कल्पना चावला |
☆ दोस्तो यह कहानी है उस कल्पना की जिसने सितारे तक जाने की कल्पना की और खुद सितारों मै ही खो गई।
☆भारत की बेटी कल्पना अब एक एसा नाम है जिसे ना तो हम भूले हैं और ना ही कभी भूल पायेगे।
☆ भारतीय रिमोट सेंसर सेटेलाइट के नाम मे, भारत की पहली अन्तरिक्ष महिला यात्री के नाम मे, नासा के मेमोरियल के ऊपर
लिखे हुए कल्पना के नाम मे वे हमेशा याद बन कर रह गई है।
जीवन परिचय :-
भारत की महान बेटी-कल्पना चावला भारत के हरियाणा करनाल जिले में जन्मी थी। उनका जन्म 17 मार्च् सन् 1962 में हुआ था। उनके पिता का नाम "श्री बनारसी लाल चावला" और माता का नाम "संजयोती देवी" था। वह अपने परिवार के चार भाई बहनो में सबसे छोटी थी। घर में सब उसे प्यार से मोंटू कहते थे।
कल्पना का मतलब Imagination है ,
वह अपने इसी नाम की ही तरह सितारों और आकाश के आगे की कल्पना करती और अक्सर यह सोचती थी कि ईन सितारों के ऊपर क्या है। वे सितारों के अनंत ऊचाईयों की कल्पना करती ही रहती थी।
कल्पना की प्रारंभिक पढाई “टैगोर बाल निकेतन” करनाल में हुई। कल्पना जब आठवी कक्षा में पहुचीं तो उन्होंने इंजिनयर बनने की इच्छा प्रकट की। उसकी माँ ने अपनी बेटी की भावनाओं को समझा और आगे बढने में मदद की। कल्पना न तो काम करने में आलसी थी और न असफलता में घबराने वाली थी।
पर कल्पना के पिता उसे चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे।
करनाल उन शहरो मे से एक था जहा पर एवीएशम क्लब था, कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थी। और एक दिन कल्पना के पिता उसे वहा ले गए और उन्होंने छोटी सी कल्पना और उसके भाई को उड़ान भरने का अनुभव करवा दिया।
खुद सुनते हैं कल्पना के पिता द्वारा करायी गयी उड़ान पर उनका क्या कहना है।
करनाल मे प्रारम्भिक शिक्षा के बाद
⇒ सन 1976 में आगे की शिक्षा वैमानिक अभियांत्रिकी(aeronautical Engineering) में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़, भारत से करने के बाद 1982 में अभियांत्रिकी स्नातक (aeronautical Graduate) की उपाधि प्राप्त की।
⇒ इसके बाद वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका 1982 में चली गईं और 1984 वैमानिक अभियान्त्रिकी में विज्ञान निष्णात (master) की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आर्लिंगटन से प्राप्त की।
⇒ कल्पना ने 1986 में दूसरी विज्ञान निष्णात(master) की उपाधि पाई और 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से वैमानिक अभियंत्रिकी में विद्या की उपाधि पाई।
⇒ कल्पना को हवाईजहाज़ों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे।
अन्तरिक्ष यात्री बनने से पहले वो एक सुप्रसिद्ध नासा कि वैज्ञानिक थी।
⇒1986 में वे एक उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक, "जीन पियरे हैरीसन" से मिलीं और उनसे शादी की और 1990 में संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिक बनीं कल्पना मार्च 1995 में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और उन्हें 1998 में अपनी पहली उड़ान के लिए चुनी गयीं थी। उनका पहला अंतरिक्ष मिशन 19 नवम्बर 1997 को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-87 से शुरू हुआ।
कल्पना अंतरिक्ष में उड़ने वाली पहली भारत में जन्मी महिला थीं और अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं।
इससे पहले भारत के राकेश शर्मा ने 1974 में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी।
⇒ कल्पना जी अपने पहले मिशन में 1.04 करोड़ मील का सफ़र तय कर के पृथ्वी की 252 परिक्रमाएँ कीं और अंतरिक्ष में 360 से अधिक घंटे बिताए।
⇒ एसटीएस-87 की उड़ानोपरांत गतिविधियों के पूरा होने पर कल्पना ने अंतरिक्ष यात्री कार्यालय में, तकनीकी पदों पर काम किया, उनके यहाँ के कार्यकलाप को उनके साथियों ने विशेष पुरस्कार दे के सम्मानित किया।
⇒ भारत के लिए चावला की आखिरी यात्रा 1991-1992 के नए साल की छुट्टी के दौरान थी जब वे और उनके पति, परिवार के साथ समय बिताने गए थे।
⇒ 2000 में उन्हें एसटीएस-107 में अपनी दूसरी उड़ान के कर्मचारी के तौर पर चुना गया। यह अभियान लगातार पीछे सरकता रहा, क्योंकि विभिन्न कार्यों के नियोजित समय में टकराव होता रहा और कुछ तकनीकी समस्याएँ भी आईं।
⇒ 16 जनवरी 2003 को कल्पना ने अंततः कोलंबिया पर चढ़ के विनाशरत एसटीएस-107 मिशन का आरंभ किया। कोलंबिया अंतरिक्ष यान में उनके साथ अन्य यात्री थे-
- कमांडर रिक डी . हुसबंद (Rick D. Hussband)
- पायलट विलियम स. मैकूल (William S. Macool)
- कमांडर माइकल प . एंडरसन (Michael P Anderson)
- इलान रामों (Ilan Romon)
- डेविड म . ब्राउन (David M. Brown)
- लौरेल बी . क्लार्क (Laurel b. Clarke)
अंतरिक्ष पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई।
सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार - विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल में अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई। नासा तथा विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी। 1 फ़रवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफ़ल कहलया जाने वाला अभियान भीषण सत्य बन गया।
Ending
ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा। इस तरह कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गए, "मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूँगी"।